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Shailputri Ki Katha: नवरात्रि के पहले दिन करें इस कथा का पाठ

Shailputri Ki Katha: शारदीय नवरात्रि आज शुरू हो गए हैं। इस बार मां दुर्गा का आगमन हाथी और प्रस्थान मनुष्य के कंधे पर हुआ है। ज्योतिष विज्ञान की समझ रखने वाले ज्योतिषाचार्य ने बताया है कि 26 और 28 सितंबर को कुछ खास योग बन रहे हैं। यह योग बहुत शुभ है। आज कलश स्थापित करने वाले लोग कलश में हल्दी की गांठ, अष्टगंध और सिक्का डालकर कलश में आम के पांच पत्ते जरूर लगाए।

नवरात्रों में बन रहे खास योग (Shailputri Ki Katha)

ज्योतिषाचार्य द्वारा बताया गया है कि इस शारदीय नवरात्रों में 26 और 28 सितंबर को सर्वार्थ सिद्धि योग, सूर्य,, बुद्ध की युति में बुधादित्य को रवि योग और शुक्ल योग (shardiya navratri 2025) का निर्माण हो रहा है। यह सभी योग अत्यंत शुभ और लाभकारी है। भक्तों द्वारा नवरात्रों के 9 दिन पूजा की जाती है। लेकिन, इन खास दिनों पर पूजा करने से ज्यादा लाभ प्राप्त होता है।

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नवरात्रि का पहला दिन मां शैलपुत्री कथा

नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री (mata shailputri puja vidhi) की पूरी विधि विधान से पूजा की जाती है। साथ ही माता की कथा भी पढ़ी जाती है। नीचे आप मां शैलपुत्री की कथा देखकर पढ़ सकते हैं। कथा का पाठ करने से आपको भगवती का आशीर्वाद मिलेगा।

मां शैलपुत्री व्रत कथा (Mata Shailputri Ki Katha)

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार राजा दक्ष प्रजापति के आने पर वहां मौजूद सभी लोग उनका स्वागत करने के लिए खड़े हुए थे। लेकिन, भगवान शंकर अपने स्थान से नहीं उठे। राजा दक्ष को भगवान शिव की यह बात बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगी और उन्होंने इसे अपना अपमान समझ लिया। कुछ समय बाद दक्ष ने अपने निवास पर एक यज्ञ का आयोजन किया और उन्होंने भगवान शिव को छोड़कर सभी देवी देवताओं को बुलाया। ऐसा दक्ष ने अपने अपमान का बदला लेने के लिए किया।

माता सती ने अपने पति यानि भगवान शिव से पिता द्वारा आयोजित यज्ञ में जाने की इच्छा जाहिर की। माता सती के कहने पर भगवान शिव ने उन्हें जाने दिया। जब सती यज्ञ में गई तो केवल उनकी मां (navratri first day) से ही उन्हें प्यार मिला। उनकी बहनों ने उनका उपहास किया और तंज कसा। भगवान शंकर के बारे में माता सती के पिता ने भरे यज्ञ में सबके सामने अपमानजनक बातें कहीं। अपने पिता के मुख से अपने पति के लिए बुरी बातें सुनकर सती माता अपमान सहन नहीं कर पाई और यज्ञ विधि में बैठ कर अपने प्राण त्याग दिए।

इसके बाद माता सती का अगला जन्म शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में हुआ और वह शैलपुत्री कहलाई। कहते हैं शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शिव से हुआ था।

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हरिद्वार में स्थित सतीकुंड

सतीकुंड हरिद्वार के कनखल (sait kund haridwar) में स्थित एक पवित्र स्थान है। पौराणिक कथा के अनुसार राजा दक्ष के यज्ञ में भगवान शिव का अपमान होने पर माता सती ने इसी कुंड में बैठकर अपने प्राण त्याग दिए थे। यह स्थान दक्षेश्वर महादेव मंदिर के समीप है और सती देवी के आत्मदाह से संबंधित होने की वजह से धार्मिक महत्व रखता है।

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