उत्तराखंड

Freedom Fighters: अंग्रेजों से लोहा लेने वाले उत्तराखंड के महान वीर  

Freedom Fighters: अंग्रेजी हुकूमत से देश को बचाने के लिए पूरे देश में आजादी का आंदोलन हुआ था। उत्तराखंड भी इस लड़ाई से अछूता नहीं रहा। पेशावर कांड के महानायक वीर चंद्र गढ़वाली हो या कालू सिंह मेहरा। उत्तराखंड (Uttarakhand Freedom Fighters) के रहने वाले लोग भी आजादी की लड़ाई के मैदान में कूद पड़े थे। इनमें हरगोविंद पंत, गोविंद बल्लभ पंत, बद्री दत्त पांडे और बिश्नी देवी जैसे बड़े नाम शामिल है। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उत्तराखंड से जवाहरलाल नेहरू और महात्मा गांधी का भी अहम संबंध रहा है। 

महात्मा गांधी ने किया था उत्तराखंड का दौरा (Freedom Fighters)

आजादी की लड़ाई के दौरान कौसानी, हरिद्वार और देहरादून जैसे कई जिलों में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने दौरा किया था। पहाड़ की जनता को स्वतंत्रता आंदोलन में जुड़ने के लिए प्रेरित भी किया था। पूरे देश भर में जब स्वतंत्रता आंदोलन की आवाज बुलंद हो चुकी थी तब यह गूंज पहाड़ो तक भी पहुंची थी। 

स्वतंत्रता सेनानियों (Uttarakhand Freedom Fighters List) के नक्शे कदम पर चलकर देश की आजादी का सपना लिए बाहर की जवानी ने भी मोर्चा खोला था। इसके अलावा आधी आबादी भी सड़कों पर उतर गई थी। 

कालू सिंह मेहरा

1857 के स्वतंत्रता संग्राम में उत्तराखंड के वीर सपूत भी शामिल थे। पहाड़ की जनता भी गुलामी की जंजीरें तोड़ने के लिए तैयार हो चुकी थी। पहाड़ों में भी जगह-जगह पर प्रदर्शन किए जा रहे थे और स्थानीय आंदोलन को ताकत दी जा रही थी। कालू सिंह मेहरा चंपावत जिले के गांव के पहले क्रांतिकारी थे जो ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ क्रांति वीर संगठन बनाकर युवाओं में जोश भर रहे थे। कुमाऊं में अल्मोड़ा अखबार छापना शुरू हो गया था। इसके माध्यम से अंग्रेजों की अत्याचारों से लोगों को रूबरू कराया जा रहा था और कालू सिंह मेहरा लोगों को जोड़ने का प्रयास कर रहे थे। 

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पंडित हरगोविंद पंत 

अल्मोड़ा कांग्रेस की रीड कहे जाने वाले हरगोविंद पंत कांग्रेस द्वारा भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान सबसे पहले नजर बंद किया गया था।  पंडित हरगोविंद पंत ने आंदोलन में अहम भूमिका निभाई थी। वह देश की संविधान सभा के सदस्य भी रह चुके हैं। 

वीर चंद्र गढ़वाली

पेशावर कांड के महानायक वीर चंद्र गढ़वाली पहले ब्रिटिश सेवा में सैनिक थे। साल 1930 में अंग्रेजों ने उन्हें पेशावर भेजा जहां आंदोलन चल रहा था और आंदोलन को खत्म करने के आदेश दिए गए। लेकिन, फायर रहते हो उन्होंने क्रांतिकारी पर गोली चलाने से मना कर दिया था। इसके बाद उन्हें जेल भेजा गया और उनकी संपत्ति भी जप्त कर दी गई थी। साल 1941 में वह जेल से रिया होने के बाद महात्मा गांधी से मिले और भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल हो गए थे। 

बद्री दत्त पांडे

कुमाऊं केसरी के नाम से मशहूर बद्री दत्त पांडे को 1921 में हुए कुली -बेगार आंदोलन में अहम माना गया था। ऐसा इसलिए क्योंकि उन्होंने अंग्रेजों की इस प्रथा को खत्म करने के लिए अपना अहम योगदान दिया था। कुली -बेगारआंदोलन को महात्मा गांधी नेरक्तहीन क्रांति कहा क्योंकि यह अहिंसात्मक रूप से हुआ था।

बिशनी देवी 

राज्य की पहली महिला स्वतंत्रता सेनानी बिशनी देवी की आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका रही थी।देश की आजादी के लिए अपना सब कुछ न्योछावर करने वाले गुमनाम नायकों का जब जिक्र होता है, तो बिशनी देवी को भी याद किया जाता है। बिशनी देवीअल्मोड़ा की रहने वाली थी। वह आजादी की लड़ाई में जेल जाने वाली पहली महिला भी थी।

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