Haridwar Temples: जैसे-जैसे बढ़ रहा पाप, वैसे पाताल लोक में जा रहा शिवलिंग
Haridwar Temples: हरिद्वार का हर की पौड़ी देश नहीं बल्कि पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। यहां रोजाना हजारों लोग घूमने और गंगा स्नान करने आते हैं। तीर्थ नगरी हरिद्वार में हर की पौड़ी समेत कई प्राचीन मंदिर मौजूद है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार प्राचीन काल में समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश से अमृत की बूंदे हरिद्वार (Haridwar Temples) की हर की पौड़ी, प्रयागराज, नासिक और उज्जैन में छलक कर गिर गई थी। हर की पौड़ी पर हर 12 साल बाद महाकुंभ का आयोजन इसलिए किया जाता है। देश-विदेश से लोग (haridwar tourist places) रोजाना मोक्ष की कामना को लेकर यहां गंगा स्नान करेंगे आते हैं।

दक्षेश्वर महादेव मंदिर

हरिद्वार की प्राचीन नगरी कनखल में दक्षेश्वर महादेव मंदिर स्थित है। इस मंदिर में स्वयंभू पातालमुखी शिवलिंग है। कनखल भगवान भोलेनाथ की ससुराल है और भगवान भोलेनाथ की पहली पत्नी सती का जन्म स्थान भी है। पूरी दुनिया में दक्षेश्वर मंदिर में ही स्वयंभू प्राचीन पातालमुखी शिवलिंग है। यही माता सती ने हवन कुंड में बैठकर अपने प्राण त्याग दिए थे।
कुंडी सोटेश्वर महादेव मंदिर

नजीबाबाद रोड पर स्थित कुंडी सोटेश्वर महादेव मंदिर एक प्राचीन मंदिर है। मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग है। मान्यता अनुसार महादेव और उनके घर आज भी इस मंदिर में निवास करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि प्राचीन समय में जब भोलेनाथ की बारात आई थी तो उनकी बारात इसी स्थान पर रुकी थी। इस मंदिर में माता सती के द्वारा बनाई गई वाटिका भी है।
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दारिद्र भंजन महादेव मंदिर

हरिद्वार की उपनगर कनखल में स्थित दारिद्र भंजन महादेव मंदिर प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग है जो धीरे-धीरे पाताल लोक में जा रहा है। कहां जाता है कि इस मंदिर में पूजा पाठ करने से लोगों की दरिद्रता दूर होती है। कहां जाता है कि जैसे-जैसे पाप बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे दारिद्र भंजन महादेव मंदिर में स्थित प्राचीन शैंपू शिवलिंग पाताल लोक में जा रहा है।
नीलेश्वर महादेव मंदिर

नजीबाबाद हरिद्वार रोड पर स्थित नीलेश्वर महादेव मंदिर प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग है। कहां जाता है कि प्राचीन काल में भगवान भोलेनाथ ने इसी स्थान पर समुद्र मंथन से निकला विष पिया था। इस वजह से इस स्थान का नाम नीलेश्वर महादेव मंदिर है। भगवान भोलेनाथ इसी स्थान पर विश्व पीकर नीलकंठ गए थे। इसी स्थान पर बैठे-बैठे राजा दक्ष का यज्ञ भी भगवान भोलेनाथ ने विध्वंस किया था।