नौकरीसंपादकीय

India Mentality: सरकारी नौकरी काम की कुर्सी या झपकी की कुर्सी?

India Mentality: By पारस त्यागी, Yoga Trainer

क्या भारत में कुछ भी नहीं करना भी कोई काम है?
क्या पढ़ने के बाद आसान काम मिलते हैं?

आपने अक्सर ये तो सुना ही होगा भाई – सरकारी नौकरी लग जाए उसके बाद तो बस आराम ही आराम। भाई यहां काम कर लो, आसान काम है, बस कुछ नहीं करना है यार। इसका परिणाम यह है कि हमारे देश का युवा दिन-प्रतिदिन आलस का शिकार होते जा रहे हैं और इस मानसिकता के कारण तरह-तरह के जाल में फंस रहे हैं। इसका परिणाम –

जिनकी सरकारी नौकरी लग गई, वो आराम से बैठे हैं – “चाहे देश डूब जाए पर आराम में बाधा न आए।”

इसी आसान काम के कारण सरकारी नौकरियों के नाम पर घूसखोरी बढ़ रही है। बस किसी कीमत पर सरकारी नौकरी मिल जाए, फिर सब वसूल हो ही जाएगा। इसी आसान काम के कारण लोगों को ऑनलाइन 1 लाख रुपए तनख्वाह की जॉब जिसमें रेल के डिब्बे गिनने हैं, जैसी जॉब्स का scam चलन में है।

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Gambling apps का मार्केट बढ़ता जा रहा है (Indian Mentality)

Gambling apps का मार्केट बढ़ता जा रहा है – मात्र 49 रुपए में करोड़पति बनो। ज्यादातर लोग अपने काम को बोझ की तरह समझ रहे हैं। देश में skilled लोगों की कमी पड़ गई है। स्कूलों में अच्छे शिक्षक नहीं हैं और अस्पतालों में अच्छे डॉक्टर नहीं हैं। ये तो आपने बहुत बार सुना होगा, पर कभी सोचा इसके पीछे का मूल कारण क्या है??

इन सबके पीछे भी हमारी यही आराम के काम की सोच है, जो एक शिक्षक को अच्छा शिक्षक नहीं बनने देती और जो एक डॉक्टर को अच्छा डॉक्टर नहीं बनने देती।

पर इसकी शुरुआत कहाँ से होती है –

हमारे घरों से – जब कोई बच्चा पढ़ता नहीं है तो उसके माता-पिता उसे कहते हैं कि “पढ़ लें, बाद में जब नौकरी लग जाएगी तब आराम कर लेना।”
यह बात सही है या गलत, इसका फैसला आप खुद करें।

हमारे विद्यालयों में भी इस सोच के अंश देखने को मिल जाते हैं – कई बार शिक्षकों के द्वारा दिए गए गलत उदाहरण भी बच्चों को गलत राह दिखा सकते हैं। जैसा अक्सर सुनने को मिलता है कि “जीवन के इन सालों में मेहनत कर लो, बाद में आराम ही आराम।”
मेरा इन सभी शिक्षकों से एक सीधा-साधा सवाल है – क्या आराम ही जीवन का लक्ष्य है?

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भारतीय रूढ़िवादी सोच (India Mentality Facts)

काफी हद तक इसमें हमारी भारतीय रूढ़िवादी सोच भी शामिल है – जो कुर्सी पर बैठकर आराम करता है वह महान, और जो मेहनत करते हैं वह नौकर। क्या निष्ठापूर्वक अपने कार्य को करना गुलामी है? लेकिन, हम इसमें क्या कर सकते हैं? यह तो चला आ रहा है। शायद यह चलन भी तो इंसानों ने ही चलाया था। क्या हम इस चलन को बदल नहीं सकते?

हमारा मूल भारतीय समाज ऐसा तो न था। हमारा चलन तो यह था –

उद्यमेन हि सिद्ध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः।

कार्य केवल मन की इच्छा से नहीं बल्कि कर्म और परिश्रम (India Mentality) से पूरे होते हैं। अगली बार जब हम बच्चों को उदाहरण दें तो इसका ध्यान रखें – उन्हें कर्मों की ओर प्रेरित करें, न कि विलासिता और आराम से भरे जीवन की ओर।

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