Kedarnath Yatra 2025: भोले के दीवानों के लिए खुशखबरी! इस दिन खुलेंगे केदारनाथ के कपाट
Kedarnath Yatra 2025: भगवान आशुतोष के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक केदारनाथ धाम के कपाट 2 में को सुबह 7:00 बजे शुभ लगन पर खोले जाएंगे। महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर बाबा केदार के कपाट खुलने की तिथि घोषित कर दी गई है। पंच केदार गाड़ी स्थल ओंकारेश्वर मंदिर में आज महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर केदारनाथ के रावल भीमाशंकर लिंग की मौजूदगी में श्री केदारनाथ धाम के कपाट खुलने की तिथि तय हुई है।

पंचांग गणना के अनुसार तिथि हुई तय (kedarnath opening date 2025)
आचार्य द्वारा पंचांग गणना के अनुसार श्री केदारनाथ धाम के कपाट खुलने की तिथि और समय घोषित किया गया है। इस कार्य को करने के लिए केदारनाथ धाम के रावल भीमाशंकर लिंग भी उठी मत पहुंच गए थे। ओंकारेश्वर मंदिर में सुबह 6:00 बजे से पूजा अर्चना शुरू हो गई थी। बाबा केदारनाथ को बालभोग और महाभोग लगाते हुए आरती भी की गई। इसके उपरांत रावल भीमाशंकर लिंग की मौजूदगी में श्री केदारनाथ धाम के कपाट 2 मई (Kedarnath Yatra Opening Date 2025) को खोले जाने की तिथि घोषित की गई।
कौन है रावल भीमाशंकर लिंग?
रावल भीमाशंकर लिंग (rawal bhimashankar ling) वर्तमान में केदारनाथ धाम के रावल या मुख्य पुजारी हैं। वह सुनिश्चित करते हैं कि मंदिर की सभी परंपराओं का सही तरह से पालन किया जाए और देवताओं की पूजा सदियों पुराने तरीकों से ही की जाए। साथ ही वह यह भी सुनिश्चित करते हैं कि मंदिर की पवित्रता हमेशा बनी रहे।
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सदियों पुरानी है रावल परंपरा
रावल परंपरा (kedarnath rawal tradition) सदियों पुरानी है। इस बात का अंदाजा आप लगा सकते हैं कि वर्तमान में रावण भीमाशंकर 324वें रावल है। रावल पद की शुरुआत टिहरी के राज परिवार ने की थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार राज परिवार ने मंदिर के रावल को कुछ गांव दिए थे और उन्हें शिष्य रखने की भी अनुमति दी थी। सन 1948 के बाद केदारनाथ मंदिर समिति को 1948 के अधिनियम के अनुसार रावल की नियुक्ति का अधिकार मिल गया था।
आजीवन ब्रह्मचारी रहते हैं रावल
पहले मंदिर में रावल ही सबसे बड़े अधिकारी हुआ करते थे। वह ही पुजारी को नियुक्त किया करते थे। 321वें रावल नीलकंठ लिंग के समय में मंदिर उनके अधीन हुआ करता था। लेकिन अब वह समिति से वेतन लेते हैं। रावल आजीवन ब्रह्मचारी रहते हैं। वह हमेशा मंदिरों में ही रहते थे लेकिन अब सर्दियों के दौरान वह पहाड़ों को छोड़कर सनातन धर्म के प्रचार के लिए विभिन्न शहरों में जाते हैं। प्रथम रावल का नाम बैकुंठ भैरव था।
दक्षिण भारत से होते हैं पुजारी
बद्रीनाथ (badrinath) और केदारनाथ मंदिर (kedarnath) के मुख्य पुजारी को रावल कहा जाता है। जो दक्षिण भारतीय राज्यों से आते हैं। रावल को शंकराचार्य के कल का वंशज भी कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि शंकराचार्य ने ही दक्षिण भारतीय पुजारी को हिमालय के मंदिर में नियुक्त करने की परंपरा की शुरुआत की थी। यह परंपरा आज भी चली आ रही है। बद्रीनाथ धाम और केदारनाथ धाम की पूजा पद्धति अलग होती है। बद्रीनाथ में रावल खुद मंदिर में भगवान नारायण की पूजा करते हैं। लेकिन, केदारनाथ में पूजा अर्चना के लिए रावल पुजारी को नियुक्त करते हैं।
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बद्रीनाथ और केदारनाथ के पुजारी (badrinath)
बद्रीनाथ धाम के मुख्य रावल केरल के नंबूदरी ब्राह्मण होते हैं। जिन्हें मुख्य रावल चुना जाता है, उनके गले में पैदाइशी जानू का निशान होता है। इसके अलावा केदारनाथ में रावल को महाराष्ट्र या कर्नाटक से चुना जाता है।
कौन होते हैं सरोला ब्राह्मण?
रावलों की अनुपस्थिति में सरोला ब्राह्मण मंदिर में दिशा निर्देश के अनुसार पूजा करवाते हैं। सारोला ब्राह्मण रावलों के सहयोगी माने जाते हैं। वह स्थानीय डिमरी समुदाय के होते हैं। कहां जाता है कि डिमरी भी मूल रूप से दक्षिण भारतीय हैं, जो शंकराचार्य के साथ ही सहायकों के तौर पर यहां आए थे और करणप्रयाग के पास स्थित डिम्मर गांव में बस गए। इसके बाद उन्हें डिमरी समुदाय के नाम से जाना जाने लगा। बद्रीनाथ धाम में भोग बनाने का अधिकार डिमरी ब्राह्मणों को ही दिया गया है।
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केदारनाथ में भगवान शिव लिंग के रूप में विराजमान (kedarnath history)
केदारनाथ धाम (kedarnath dham) में भगवान शिव लिंग के रूप में विराजमान है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यहां भगवान शिव द्वारा धारण किए गए भैंस के रूप के पिछले भाग की पूजा की जाती है। केदारनाथ धाम में हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। केदारनाथ धाम के कपाट हर वर्ष अप्रैल या मैं के महीने में खोले जाते हैं और भैया दूज पर शीतकालीन के लिए बंद कर दिए जाते हैं। शीतकालीन के दौरान बाबा केदारनाथ की चाल विग्रह उत्सव डोली को उठी मत स्थित ओंकारेश्वर मंदिर लाया जाता है। 6 महीने के लिए बाबा यही विराजमान रहते हैं।
स्कंद पुराण के केदार खंड में केदारनाथ का जिक्र
केदारनाथ धाम (kedarnath yatra 2025) का उल्लेख स्कंद पुराण के केदार खंड में है। कहा जाता है कि मंदिर का निर्माण कत्यूरी शैली में हुआ है। पांडवों के वंशज जन्मजेय ने यहां इस मंदिर की स्थापना की थी। बाद में आदि शंकराचार्य द्वारा इसका जीर्णोद्धार कराया गया था।
केदारनाथ पहुंचे थे पांडव (Kedarnath Yatra 2025)
मंदिर के संबंध में कई मान्यताएं हैं। जिनमें से एक मान्यता है कि महाभारत के बाद पांडव (kedarnath history) अपने गोत्र बंधुओं की हत्या के पाप से मुक्ति के लिए भगवान शिव की शरण में जाना चाहते थे। जिसके लिए वह भगवान शिव की खोज करने हिमालय की ओर गए। उसे दौरान भगवान शिव अंतर्ध्यान होकर केदार में बस गए थे। पांडव भी उनके पीछे केदार पर्वत पहुंच गए। इसके बाद भगवान शिव ने पांडवों को आता देख भैसें का रूप धारण कर लिया और पशुओं के बीच में चले गए। भगवान शिव के दर्शन पाने के लिए पांडवों ने एक योजना बनाई और भी मैंने अपना विशाल रूप धारण कर अपने दोनों पैर केदार पर्वत के दोनों ओर फैला दिए।
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भैसें रूपी भगवान शिव के पिछले भाग को भी ने पकड़ा था
भीम भगवान शिव को भी पहचान गए थे और भैसें के रूप में भगवान को पकड़ना चाहा तो वह धरती में समाने लगे। इस दौरान भी ने भैसें का पिछला भाग कसकर पकड़ लिया था। भगवान शिव पांडवों की भक्ति से प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन देकर पाप से मुक्त कर दिया। कहां जाता है कि तभी से भगवान शिव की यहां भैसें की पीठ की आकृति के रूप में पूजे जाते हैं। इस भैसें कामुक नेपाल में निकला जहां भगवान शिव की पूजा पशुपतिनाथ के रूप में की जाती है।