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हरिद्वार का यह स्थान: जहां भोलेनाथ ने पिया था हलाहल विष, जानें मान्यता

देवभूमि उत्तराखंड में ऐसे बहुत से स्थान है जहां पर युगों से देवी देवताओं का वास है। राज्य के हरिद्वार जिले में भी कई ऐसे स्थान है जिनका वर्णन धार्मिक ग्रंथो में मौजूद है। सभी स्थानों की प्राचीनता आदि अनादि काल की है। हरिद्वार को भोलेनाथ की नगरी के साथ-साथ मां गंगा की नगरी भी कहा जाता है। यहां मौजूद हर की पौड़ी की भी विशेष मान्यता है। 12 महीने हर की पौड़ी पर तीर्थ यात्रियों की आवाजाही लगी रहती है।

जब किसी दिन कोई विशेष स्नान होता है उस दिन हर की पौड़ी पर हजारों लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ होती है। लेकिन क्या आपको पता है कि हरिद्वार में ही भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकला विष पिया था। इस जगह का नाम है नीलेश्वर महादेव मंदिर जहां देश-विदेश से श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं। नीलेश्वर महादेव मंदिर का वर्णन धार्मिक ग्रंथों में भी किया गया है।

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नीलेश्वर महादेव मंदिर की मान्यता

नीलेश्वर महादेव मंदिर हरिद्वार नजीबाबाद रोड पर स्थित है यहां श्रद्धालु भक्ति भाव से भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना करने आते हैं। मंदिर में पुजारी रोजाना सुबह और शाम आरती करते हैं। देश ही नहीं बल्कि विदेश से भी श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएं पूर्ण होने का विश्वास लेकर मंदिर आते हैं। ऐसी मान्यता भी है कि महादेव मंदिर में आने वाले सभी श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं जरूर पूरी करते हैं। मंदिर में भगवान भोलेनाथ स्वयंभू शिवलिंग के रूप में विराजमान है।  स्वयंभू शिवलिंग पर गंगाजल और दूध से अभिषेक करना बहुत विशेष माना जाता है।

स्कंद पुराण और शिव पुराण में विस्तार से है वर्णन

नीलेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी के द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार नीलेश्वर महादेव मंदिर का वर्णन स्कंद पुराण और शिव पुराण में विस्तार से दिया गया है। उन्होंने यह भी बताया कि कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को यदि मंदिर में कोई व्यक्ति पूजा करता है तो उसके तान के रोग तक दूर हो जाते हैं। यदि आप शिवलिंग पर  मात्र एक लोटा गंगाजल चढ़ाने से तीर्थ फल की भी प्राप्ति होती है। पूर्णिमा को दूध से अभिषेक करने पर श्रद्धालुओं को विशेष फल भी मिलता है।  सोमवार का दिन भोलेनाथ की सेवा अर्चना का दिन माना जाता है। यदि श्रद्धालु पूरे भक्ति भाव से सोमवार के दिन इस मंदिर में आकर भगवान भोलेनाथ की पूजा करते हैं तो उनकी सभी मनोकामनाएं जरूर पूरी होती है।

यहीं से उत्पन्न हुए थे वीरभद्र

मंदिर के पुजारी  ने बताया कि यह शिवलिंग सतयुग के समय का शिवलिंग है। यहीं पर भगवान भोलेनाथ ने अपनी जटा से वीरभद्र को उत्पन्न किया था। हरिद्वार में भगवान शिव का ससुराल भी है जिसे वर्तमान में कनखल कहा जाता है।  जहां  माता सती का मायका दक्षेश्वर मंदिर है। नीलेश्वर महादेव मंदिर में बैठे-बैठे ही भगवान भोलेनाथ ने राजा दक्ष के यज्ञ का विध्वंस भी किया था। 

हैरानी करने वाली बात यह है कि इसी स्थान पर भगवान शंकर ने समुद्र मंथन से निकला विश्व भी पिया था।  यहां से जाने के बाद भगवान ने नीलकंठ में आराम किया था। ऐसा माना जाता है कि जब भोलेनाथ ने विष पिया था तो जिस पर्वत पर नीलेश्वर महादेव मंदिर है, वह नीला हो गया था। साथ ही मां गंगा का जल भी नीला हो गया था। इसी वजह से आज भी इस पर्वत को नील पर्वत, और मां गंगा को नीलगंगा के नाम से भी जाना जाता है।

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