देहरादून

Uttarakhand: यूसीसी उत्तराखंड के मूल निवासियों के लिए बना बड़ा खतरा

Uttarakhand: उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया गया है। वर्तमान सरकार के इस फैसले से विपक्ष नाखुश नजर आ रहा है। कांग्रेस की मुख्य प्रवक्ता गरिमा दसोनी ने यूसीसी ने को उत्तराखंड के लोगों की मूल निवास की मांग के खिलाफ बताया है। उन्होंने कहा कि यूसीसी मैं एक वर्ष तक रहने वाले लोगों को भी राज्य का निवासी माना जा रहा है। गरिमा ने कहा कि 1 वर्ष तक रहने वाले लोगों को कैसे राज्य का निवासी बताया जा रहा है। 

उत्तराखंड की मूल निवास की मांगों का खंडन

गरिमा दसोनी (garima dasauni congress)ने कहा कि यह सीधे तौर पर उत्तराखंड(Uttarakhand) की मूल निवास की मांगों का खंडन करना है। लंबे समय से जो मूल निवास को परिभाषित करने के लिए एक कट ऑफ वर्ष को मान्यता देने की मांग करते आ रहे हैं। लेकिन, यह प्रावधान बाहरी लोगों के लिए राज्य के संसाधनों के दोहन का रास्ता साफ करता है। ऐसा करने से मल आबादी के अधिकार और पहचान कमजोर पड़ते हैं। 

गरिमा ने यूसीसी कोड को बताया गलत 

गरिमा दोसानी ने यूसीसी कोड को ना तो समाज के किसी वर्ग की सेवा करता हुआ बताया और ना ही संवैधानिक सिद्धांतों के अनुरूप होना बताया है। गरिमा दसोनी ने कहा कि यह सीधे तौर पर मौलिक अधिकारों पर चोट करता है। इसके अलावा उत्तराखंड में आदिवासी समुदायों को यूसीसी से बाहर रखना इसकी एकरूपता के दावे को कमजोर करता है। 

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यूसीसी की संवैधानिकता को संदिग्ध बताया

गरिमा दसोनी ने कहा कि यूसीसी को अनुच्छेद 254 (2) के तहत राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई है। लेकिन, इसकी संवैधानिकता संदिग्ध है। निजी संबंधों के सार्वजनिक पंजीकरण को अनिवार्य करके, सामाजिक और सांप्रदायिक हस्तक्षेप के लिए उपजाऊ जमीन तैयार करना है। यह उत्तराखंड जैसे विविधतापूर्ण राज्य में विशेष रूप से खतरनाक है। यहां अंतर समुदाय संबंध, लैंड जिहाद, थूक जिहादी आदि प्रकरणों की वजह से पहले से ही स्थितियां चुनौती से भरी हुई है। 

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