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Him Village E-Prahari: ऋषिकेश का एक ऐसा गांव जहां नहीं मौजूद कचरा

Him Village E-Prahari: सुमित सिंह रुद्रप्रयाग के रहने वाले हैं। उनके पैतृक गांव से विशाल बर्फ से ढकी चोटियां हमेशा उनकी दृष्टि में रही। लेकिन वर्षों बाद, जब उनका परिवार हरिद्वार आ गया तो उन्होंने देखा की बचपन का वह निर्मल दृश्य धुंधला हो गया था। हवा धुंधली हो गई है और दूर के ग्लेशियर भी सिकुड़ते हुए दिखने लगे हैं। यह क्षति सुमित के लिए बेहद व्यक्तिगत थी।

Him Village E-Prahari

सेवा की ओर पहला कदम (Him Village E-Prahari)

Him Village E-Prahari Rishikesh

कॉलेज के समय मनोविज्ञान में ग्रेजुएशन की पढ़ाई के दौरान, सुमित ने राष्ट्रीय सेवा आयोजन (National Service Scheme) और नमामि गंगे जैसे संगठनों के साथ स्वयं सेवा शुरू की। हिमाचल प्रदेश में एक राष्ट्रीय शिविर और यूएनडीपी के प्रोजेक्ट ने उन्हें यह समझाया की सेवा केवल विचार नहीं है। बल्कि व्यावहारिक काम भी है। 5 साल तक उन्होंने अपने जीवन को स्वयंसेवा को समर्पित कर दिया।

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सामाजिक क्षेत्र की कठिनाई

Waste Management

जब उन्होंने सामाजिक क्षेत्र में नौकरी की तलाश की, तो उनके 5 साल के स्वयंसेवा अनुभव का कोई महत्व नहीं था। उन्हें एहसास हुआ कि पेशेवर क्षेत्र और जुनून के बीच एक बड़ी खाई है- एक ऐसी दुनिया जहां समाज स्वयंसेवा को स्थाई करियर के बजाय त्याग मानता है।

सेवा इंटरनेशनल और पहला बड़ा अवसर (Him Village E-Prahari Foundation)

Save Environment

सेवा इंटरनेशनल (Sewa International) ने उनका मार्ग बदल दिया। 15,000 आवेदकों में से केवल 30 फ़ेलोशिप की जगह के लिए उन्होंने आवेदन किया और चुन लिए गए। यह यात्रा उन्हें मुंबई और भोपाल ले गई। जहां उन्होंने Sarthak नमक पर्यावरण एनजीओ में परियोजना प्रबंधन और मटेरियल रिकवरी फैसिलिटी संचालन (एमआरएफ) के बारे में सीखा।

उत्तराखंड लौटकर हिमालय को बचाने की ठानी

Him Village E-Prahari Foundation

ज्ञान और अनुभव के साथ, सुमित ने हिमालय में कचरे की समस्या का सामना किया। स्थानीय और पर्यटकों से हुए कचरे के दो विकल्प थे- जलाना या फिर जंगल में फेंकना। सुमित ने अपनी होशियारी से तीसरा विकल्प बनाया। इस प्रकार हिम ग्राम ई-प्रहरी फाउंडेशन की स्थापना हुई। यह नाम उनके दृष्टिकोण को दर्शाता था:

हिम (हिमालय), ग्राम और ई-प्रहरी (पर्यावरण संरक्षक) ( Him (Himalaya), Village, and E-Prahari (Environmental Protectors)। उन्होंने और उनकी छोटी, शुरुआती टीम – ए. एम. संजीव, आदित्य, पारस – ने अपने Zero-Waste Model को लागू करने के लिए एक गाँव चुना।

किस प्रकार से शुरू हुआ काम? (Him Village E-Prahari)

Zero Waste Village

गांव के प्रधान के साथ सब की पहली मुलाकात सफल रही। लेकिन, फिर भी समुदाय में संदेह की भावना थी। एक बुजुर्ग ने उन्हें बताया कि- “पहले भी कई सफाई अभियान हुए हैं। वह शुरू होते हैं, फिर बंद हो जाते हैं और गंदगी हमारी समस्या बन जाती है।” सुमित ने उनकी हिचकीचाहट समझी और एक जरूरी वादा किया। सुमित ने उन्हें आश्वासन दिया, ” हम आप पर कोई बोझ नहीं छोड़ेंगे। हम जो भी कचरा इकट्ठा करेंगे उसे यही गांव में पैक करके रखेंगे। जब हमारे पास पर्याप्त मात्रा में कचरा इकट्ठा हो जाएगा, तो हम उसे खुद ही किसी उचित रीसाइकलिंग केंद्र में ले जाएंगे हम शुरुआत से अंत तक इसका प्रबंधन करेंगे।”

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वादे ने दिलाया विश्वास

Rishikesh Zero Waste Management

सुमित द्वारा किए गए इस वादे ने उन्हें विश्वास दिलाया। परियोजना की शुरुआत 25 परिवारों से हुई, जिनमें से प्रत्येक को उनके सूखे, ठोस कचरे के लिए एक reusable थैला दिया गया। गांव में रसोई का गीला कचरा कभी कोई समस्या नहीं था। उसे या तो मवेशियों को खिला दिया जाता था या खाद में बदल दिया जाता था। असली समस्या इंसानों द्वारा पैदा किया गया गैर-जैवनिम्नीकरणीय (non-biodegradable) कचरा था-जिसमें प्लास्टिक के पैकेट, रैपर और बोतल शामिल है।

शुरुआत में आई दिक्कतें (Uttarakhand Villages)

Ganaga Bhogpur Village

पहले हफ्ते के बाद, नतीजे काफी निराशाजनक थे। केवल पांच परिवारों ने उन थैलों का इस्तेमाल किया था। बाकियों ने केवल बहाने बनाएं। लेकिन, सुमित और उनकी टीम ने हार नहीं मानी और रामेश्वर जी जैसे सामुदायिक नेताओं को अपने साथ शामिल किया। जो उनके दृष्टिकोण से सहमत थे। साथ मिलकर वह घर-घर गए, चाय नाश्ता किया और बातचीत की। जिससे आपसी (rishikesh) विश्वास का निर्माण हुआ। भागीदारी बड़ी और 15 परिवारों तक पहुंच गई। लेकिन, यह पर्याप्त नहीं था।

सुमित ने देखा कि बिखरे कूड़े का सबसे बड़ा स्रोत बच्चे थे- जो चिप्स और कैंडी के रैपर फेंकते थे। जब उन्होंने इस और ध्यान दिलाया तो माता-पिता अक्सर कहते थे कि- ” यह बच्चों की वजह से है, हम उन्हें नियंत्रित नहीं कर सकते।” यह टीम के लिए मुश्किल क्षण था। क्योंकि मुख्य बात बच्चों को डांटना नहीं बल्कि उन्हें सशक्त करना था।

बच्चों को क्रिएटिव तरह से समझाया

Him Village E-Prahari Work

वह गांव के स्कूल गए और एक ऐसी पहल शुरू की जिसने सब कुछ बदल दिया। सहभागी ग्रामीण मूल्यांकन (Participatory Rural Appraisal) नामक एक पद्धति का उपयोग करते हुए उन्होंने छात्रों को केवल थ्योरी नहीं समझाई। बल्कि, उन्हें शोधकर्ता बना दिया। उन्होंने उन्हें समूह में विभाजित किया और 7 दोनों का एक मिशन दिया: अपने गांव का नक्शा बनाएं और उन सभी जगह को चिन्हित करें जहां कचरा डाला जा रहा था और समाधान पर विचार करें।

अपने गांव की समस्या की हल (Zero Waste Village)

Him Village E-Prahari Team

परिणाम काफी आश्चर्यजनक थे। बच्चे चार्ट लेकर स्कूल लौटे और अपने गांव की समस्याओं को इतनी स्पष्टता से प्रस्तुत किया कि उनके माता-पिता और शिक्षक भी चौंक गए। उन्होंने जिम्मेदारी (Him Village E-Prahari) ले ली थी। इसी गति से आगे बढ़ते हुए सुमित ने हिम साथी कार्यक्रम की शुरुआत की। प्रत्येक कक्षा में, दो छात्रों को एक महीने के लिए हिम साथी नियुक्त किया गया। प्रत्येक कक्षा को एक कचरा थैला दिया गया और साथियों की जिम्मेदारी यह सुनिश्चित करना था की एक भी कचरा खिड़की से बाहर न फेंका जाए या स्कूल परिसर में ना छोड़ा जाए। स्कूल जल्द ही एक जीरो वेस्ट परिसर बन गया। जो उनके बड़े लक्ष्य का एक छोटा सा मॉडल था।

बच्चों ने अपने माता-पिता को समझाया

Him Village E-Prahari Motive

एक तरफ जहां माता-पिता यह बात बोल रहे थे कि बच्चों को नियंत्रित नहीं कर सकते। दूसरी ओर कुछ ऐसा हुआ कि बच्चों ने अपने माता-पिता को समझाना शुरू किया। बच्चे अब गर्वित पर्यावरण संरक्षण थे। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि उनके परिवार थैलों का सही इस्तेमाल करें। परियोजना 25 से बढ़कर 65 परिवारों तक पहुंच गई। आदित्य उपाध्याय और पारस त्यागी जैसे स्वयंसेवक इसमें शामिल हुए, जिससे कार्यों में ऊर्जा और गति की एक नई लहर आई। संजीव ने तकनीकी डिजिटल आउटरीच का प्रबंध किया।

एक साल में, सुमित और उनकी स्वयंसेवी टीम ने पूरी तरह से लगभग ₹1 लाख के अपने निजी धन से संचालित थी, असंभव को संभव कर दिखाया। उन्होंने जंगलों से 5,000 किलोग्राम प्लास्टिक कचरे को हटाकर उसे पंजीकृत पुनर्चक्रणकर्ताओं (registered recycler) तक पहुँचाया। उन्होंने शहरों से 100 से ज़्यादा स्वयंसेवकों को शामिल किया, इंटर्नशिप की और एक सशक्त, समर्पित टीम बनाई।

ए. एम. संजीव

ए. एम. संजीव, इंजीनियर होने के साथ-साथ पर्यावरण के प्रति बेहद जीवनी भी हैं। हिम विलेज ई-प्रहरी के साथ जुड़कर उन्होंने अपनी तकनीकी ज्ञान को हिमालय को प्लास्टिक और कचरे से बचाने में लगाया है। स्थानीय निकायों, स्कूलों और गांव के साथ काम करते हुए उन्होंने जागरूकता और ठोस कचरा प्रबंधन की कई पहले सफलतापूर्वक की है।

पारस त्यागी

पारस त्यागी योगा ट्रेनर है। उनका प्रकृति के साथ गहरा नाता है। हिम विलेज ई-प्रहरी के साथ उनका अनुभव बेहद प्रेरणादाई रहा। यह काम करते हुए उन्होंने कचरा प्रबंधन और रीसाइकलिंग की गहरी समझ विकसित की है। टीम की सहयोगी भावना ने भी उन्हें पर्यावरणीय जिम्मेदारी की ओर और अधिक प्रेरित किया। जिससे वह अपने समुदाय में बदलाव के पक्षधर बने।

आदित्य उपाध्याय

आदित्य उपाध्याय बीसीए के छात्र हैं। उन्हें साइबर सिक्योरिटी की भी बेहतरीन समझ है। टेक्नोलॉजी के साथ-साथ वह पर्यावरण संबंधित कार्यों में भी सन लिप्त है। हिम विलेज ई-प्रहरी के साथ जुड़कर उन्हें अपशिष्ट प्रबंधन (Waste Management) और प्रक्रियाओं कि हम समझ मिली है। इस अनुभव से न केवल उनके कौशल को निखार बल्कि उन्हें अपने समुदाय में पर्यावरणीय जिम्मेदारी के वकालत करने के लिए भी प्रेरित किया है।

IIT रुड़की, अनलिमिटेड इंडिया और Sewa USA का ध्यान आकर्षित किया

SEWA USA

इस मॉडल की सफलता ने आईआईटी रुड़की, अनलिमिटेड इंडिया और सेवा USA का ध्यान आकर्षित किया, जिन्होंने उनके काम का अध्ययन किया। एक लुप्त होते पहाड़ के दृश्य के एक दर्दनाक अवलोकन के रूप में शुरू हुआ यह प्रयास एक अनुकरणीय, समुदाय-संचालित समाधान में बदल गया। हिम ग्राम ई-प्रहरी फाउंडेशन ने न केवल एक गाँव के एक हिस्से की सफाई की; बल्कि उसने एक वादा पूरा किया और हिमालय की ज़रूरत का तीसरा विकल्प भी तैयार किया।

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