Haridwar Saptrishi Ghat: जहां 7 धाराओं में बिखरी गंगा की अद्भुत गाथा
Haridwar Saptrishi Ghat: हरिद्वार देश और दुनिया में मां गंगा के नाम से जाना जाता है। हरिद्वार में हर की पौड़ी से 5 किलोमीटर की दूरी पर सप्तऋषि नाम का एक घाट मौजूद है। मान्यता अनुसार यह कहा जाता है कि इस घाट पर सप्त ऋषियों ने तपस्या की थी। ऐसा माना जाता है कि जब मां गंगा नदी के रूप में गोमुख से आगे बढ़ रही थी। इस दौरान सप्त ऋषि स्थान पर बैठकर तपस्या कर रहे थे। मां गंगा ने भाई से ऋषियों की तपस्या भंग नहीं की थी। कहा जाता है की मां गंगा स्वयं ही साथ हिस्सों में बट गई यानी अपना रास्ता बदल लिया था। इस वजह से इसे सप्त धारा भी कहा जाता है।
पांडव भी यही से गुजरे थे (Haridwar Saptrishi Ghat)
मान्यता अनुसार पांडव भी स्वर्ग जाते समय इसी स्थान से होकर गुजरे थे। एक हिंदू लोक कथा के अनुसार सप्तर्षियों का यह आश्रम उनका आराधना स्थल ही था। वैदिक काल के यह सात प्रसिद्ध ऋषि थे- कश्यप, अत्रि, वशिष्ठ,जमदग्नि,गौतम,विश्वामित्र और भारद्वाज। सप्त धारा को सप्त सागर भी कहा जाता है। यह स्थान सप्त ऋषि आश्रम के पास है। आगे चलकर यह सा धारा है आपस में मिलकर नीलधारा बन जाती है।
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सप्तऋषि आश्रम में मौजूद मंदिर
सप्त ऋषि आश्रम में समय बदलने के साथ-साथ कई मंदिर भीबनाए गए। जिम पूजा करने का विशेष महत्व भी माना जाता है। सप्त ऋषि आश्रम मेंगंगेश्वर महादेव मंदिर है, जहां मानता है की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं भी पूरी होती है। सुख शांति से रहने के लिए यहां देश ही नहीं बल्कि विदेश से भी लोग आते हैं।
इसी स्थान पर सुनाई गई थी भागवत कथा
ऐसा भी कहा जाता है की सनक संदन और सनातन ने इसी स्थान पर देव ऋषि नारद को भागवत कथा भी सुनाई थी। यहां सात ऋषि जिम ऋषि विश्वामित्र भारद्वाज जमदग्नि गौतम ऋषि अत्रि वशिष्ठ और ऋषि कश्यप ने कई हजार साल तक तपस्या की थी। कहां जाता है कि सप्त ऋषि आश्रम जहां पर बना है वह ऋषि मुनियों के तपस्थली है। पौराणिक काल में जब राजा भगीरथ अपने पूर्वजों की आत्मा शांति के लिए मां गंगा को धरती पर लेकर आए थे। तो हरिद्वार में इसी स्थान पर सात ऋषि तपस्या कर रहे थे।