Mahabharat Rahasya: मेरठ से हुई थी कलयुग की शुरुआत! सब हैरान
Mahabharat Rahasya: पश्चिम उत्तर प्रदेश का मेरठ महाभारत कालीन धरती के रूप में जाना जाता है। मेरठ का हस्तिनापुर और किला परीक्षितगढ़ दोनों ही क्षेत्र महाभारत कालीन के रहस्य से भरे हुए हैं। इसी तरीके का वर्णन किला परीक्षितगढ़ स्थित श्री श्रृंगी ऋषि गंगा आश्रम के बारे में भी सुनने को मिलता है। ऐसा माना जाता है कि कलयुग का आगाज इसी आश्रम से हुआ था।
राजा परीक्षित के नाम से किले का नाम
अभिमन्यु के पुत्र राजा परीक्षित (Mahabharat Remains) के नाम से ही किला परीक्षितगढ़ को जाना जा रहा है। यह परीक्षित का राज्य क्षेत्र हुआ करता था। इसी क्षेत्र में श्री श्रृंगी ऋषि आश्रम बना हुआ है। कहा जाता है कि कलयुग की शुरुआत इसी आश्रम से हुई थी। इस आश्रम में ऐसे प्रतीक चिन्ह देखने को मिलते हैं जो ऐसी घटनाओं को जीवित किए हुए हैं।
श्रृंगी ऋषि आश्रम का रहस्य (Mahabharat Rahasya)
सरस्वती तट पर शिकार खेलते समय जब राजा परीक्षित को कलयुग मिला था। तब उसने राजा परीक्षित से स्वर्ग में स्थान मांगा। राजा परीक्षित ने उसे स्थान दे दिया और वह राजा के मुकुट में प्रवेश कर गया। ऐसा कहा जाता है कि कलयुग ने प्रवेश करते ही राजा परीक्षित की बुद्धि को अपने वश में कर लिया। जब उन्हें प्यास लगी तब वह श्री श्रृंगी ऋषि आश्रम पहुंच गए। आश्रम में ऋषि तपस्या में लीन थे। राजा परीक्षित ने कई बार उनसे जल मांगा। जब राजा की बात ऋषि शमीक नहीं सुनी तब राजा परीक्षित ने एक मरा हुआ सांप ऋषि के ऊपर फेंक दिया।
राजा परीक्षित को दिया सर्पदंश से मृत्यु का श्राप
ऐसा करने पर नाराज ऋषि शमीक के पुत्र श्री श्रृंगी ऋषि ने देख लिया और उन्होंने क्रोधित होकर राजा परीक्षित को 7 दिन के भीतर सर्पदंश से मृत्यु का श्राप दे दिया। इसके बाद अनेक प्रयास के बावजूद राजा परीक्षित को नागों के राजा तक्षक ने डस लिया जिसे परीक्षित की मृत्यु हो गई।
क्रोधित होकर जलाया यज्ञ (Mahabharat Rahasya Meerut)
राजा तक्षक से अपने पिता राजा परीक्षित (uttarpradesh religious places) की मृत्यु का बदला लेने जनमेजय ने शर्प यज्ञ की शुरुआत की। इसके निशान आज भी आश्रम में मौजूद है। ऐसा कहा जाता है कि जब सभी सांपों की बलि दी गई तब राजा तक्षक और वासुकी का ही नंबर था। राजा वासुकी ने देवी देवताओं से पुकार लगाई। इसके बाद भगवान इंद्र, ऋषि आस्तिक मुनि और दूसरे देवी देवताओं ने जनमेजय को समझाया। तब जाकर उनका सर्प यज्ञ समाप्त हुआ और राजा तक्षक और नागराज वासुकी की जान बच पाई।