Nainital News: वैज्ञानिक पर पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप
Nainital News: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने एक वैक्सीन वैज्ञानिक की सजा और दोषसिद्धि को निलंबित किया है। डॉक्टर को 2015 में अपनी पत्नी की खुदकुशी के मामले में आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी ठहराया गया था। जस्टिस रविंद्र मैथानी ने डॉक्टर आकाश यादव को अपील लंबित रहने तक राहत दी है। जिससे वह राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका फिर से निभा सकें।
कौन है डॉक्टर आकाश यादव? (Nainital News)
दरअसल, आईआईटी खड़कपुर से बायोटेक्नोलॉजी से पीएचडी करने वाले डॉक्टर आकाश यादव इंडियन इम्यूनोलॉजिकल्स लिमिटेड में सीनियर मैनेजर के पद पर काम कर रहे थे। आईआईएल इंसानों और पशुओं के लिए वैक्सीन बनाता है। साथ ही संस्थान की राष्ट्रीय टीकाकरण अभियानों में भी अहम भूमिका रहती है। कोर्ट ने यह बात मानी है कि डॉक्टर आकाश यादव की विशेषज्ञता सार्वजनिक स्वास्थ्य और राष्ट्रीय हित के लिए जरूरी है।
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पत्नी ने की आत्महत्या
डॉक्टर आकाश यादव की शादी 7 मई 2015 को हुई थी। उनकी पत्नी पंतनगर विश्वविद्यालय (scientist wife suicide case ) में नौकरी करती थी। 4 जुलाई 2015 को पत्नी अपने भाई के साथ मायके चली गई थी। लेकिन, आकाश यादव हैदराबाद में अपनी ड्यूटी पर थे। लगभग 7 महीने बाद 14 दिसंबर 2015 को उनकी पत्नी ने आत्महत्या की थी और अपनी सुसाइड नोट में अपने पति आकाश यादव को जिम्मेदार ठहराया था। इसके बाद 11 मई 2017 को आकाश यादव को गिरफ्तार किया गया था। उन्हें 3 महीने जेल में रखा गया जिसके बाद 28 अगस्त को उन्हें जमानत मिली थी।
निचली अदालत ने सुनाई थी सजा (Nainital Highcourt)
रुद्रपुर के सेशन कोर्ट ने 21 जनवरी को आकाश यादव को भारतीय दंड संहिता की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत 5 साल की सजा और ₹20,000 का जुर्माना लगाया था। लेकिन उन्हें धारा 304 बी (दहेज हत्या) और दहेज निषेध अधिनियम के तहत बरी कर दिया गया था। इस दोषसिद्धि की वजह से आकाश यादव कम्पनी में अपनी जिम्मेदारियां को निभाने के लिए अयोग्य हो गए थे।
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अब हाईकोर्ट ने पलटा फैसला
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने फैसला पलट दिया है। आकाश यादव (Nainital Latest News) ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 389(1) के तहत एक अंतरिम आवेदन दायर किया था। जिसमें उनके ऊपर लगे दोषों को निलंबित करने की मांग की गई। उनके वकील ने तर्क दिया था कि यह मामला राष्ट्रीय महत्व के कार्य पर सीधा प्रभाव कर रहा है और साधारण परिस्थितियों को दर्शा रहा है। इसके बाद जस्टिस मैथानी ने सुप्रीम कोर्ट के नवजोत सिंह सिद्धू बना पंजाब राज्य 2007 और राम नारंग बनाम रमेश नारायण 1995 के फैसलों का हवाला दिया और कहा कि अगर दोषसिद्धि को बनाए रखने से किसी व्यक्ति की पेशेवर स्थिति की जिम्मेदारियां पर अनुचित प्रभाव पड़ता है। तो अपीलीय अदालत दो सिद्धि को निलंबित कर सकती है।