उत्तराखंड

Uttarakhand News: उत्तराखंड आरक्षण व्यवस्था युवाओं के लिए श्राप या वरदान?

Uttarakhand News: उत्तराखंड के युवाओं के लिए यह चिंता का विषय पहले ही सामने आ गया थाा। हालाँकि, अब कानूनी तौर पर इस मुद्दे पर बड़ा फैसला आ सकता हैं। दरअसल, हम बात कर रहें है उत्तराखंड राज्य में बढ़ते आरक्षण के बारे में जिसकी वजह से युवाओं का जीवन अंधकार की ओर बढ़ता जा रहा है। यदि आप उत्तराखंड से है और राज्य से संबंधित सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे हैं। तो आप राज्य में जारी आरक्षण व्यवस्था के बारे में जानते होंगे। इस आरक्षण व्यवस्था के कारण बहुत से युवाओं का जीवन खराब हो सकता है। 

अभ्यर्थियों ने राज्य आंदोलनकारियों को मिल रहे आरक्षण को लेकर आवाज उठाई है। ऐसा करने के लिए अभ्यर्थियों के पास कई वजह हैं। आगे इस लेख में हम आपको बताएंगे राज्य में मौजूद आरक्षण व्यवस्था के बारे में और कैसे युवाओं का भविष्य इससे खराब हो सकता है। 

उत्तराखंड राज्य में आरक्षण व्यवस्था (Uttarakhand News)

उत्तराखंड में ऊर्ध्वाधर आरक्षण और क्षैतिज आरक्षण की व्यवस्था है। ऊर्ध्वाधर आरक्षण व्यवस्था में एससी को 19 प्रतिशत, एसटी को 4 प्रतिशत, ओबीसी को 14 प्रतिशत और ईडब्लूएस को 10 प्रतिशत आरक्षण मिलता है। यानि की राज्य में ऊर्ध्वाधर आरक्षण कुल मिलाकर 47 प्रतिशत है। 100 में से 47 सीट आरक्षण में चले जाएंगी। इसके आलावा 53 सीटें सामान्य अभ्यर्थियों के लिए बचेंगी। यदि कोई एससी, एसटी, ओबीसी अभ्यर्थी सामान्य अभ्यर्थियों के बराबर या अधिक नंबर आते है। तो फिर उसकी मेरिट को सामान्य अभ्यर्थियों की मेरिट में ही शामिल किया जाएगा। 

इसके आलावा दूसरा आरक्षण क्षैतिज आरक्षण है। जिसमें अनाथ, स्पोर्ट्स, महिला आरक्षण, एक्स आर्मी, स्वतंत्रता सेनानी आश्रित, शारीरिक रूप से अक्षम और राज्य आंदोलनकारी शामिल है।

इसमें अनाथ को 5%, खिलाड़ियों को 4%, महिलाओं को 30%,एक्स आर्मी 5%, स्वतंत्रता सेनानी आश्रित 2%, शारीरिक रूप से अक्षम 4%, और  राज्य आंदोलनकारी को 10% आरक्षण मिलता है।  यानि की राज्य में क्षैतिज आरक्षण कुल मिलाकर 60 प्रतिशत है।

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अभ्यर्थियों ने कब जारी की याचिका?

साल 2004 में आरक्षण (Uttarakhand Reservation System) देने का शासनादेश हुआ था जारी। जिसके बाद नैनीताल हाईकोर्ट ने वर्ष 2011 में उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों को 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण पर रोक लगा दी थी। साल 2015 में हाईकोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए इस आरक्षण को असंवैधानिक करार कर दिया था। तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने आरक्षण विधेयक विधानसभा से पारित करा कर राजभवन को भेज दिया था। सितंबर 2022 में सात साल बाद राजभवन ने विधेयक को  वापस लौटा दिया था।

अगले साल मार्च 2023 में कैबिनेट ने विधेयक लाने का निर्णय  फिर से लिया था। सितंबर 2023 में कैबिनेट ने विधेयक लाने का प्रस्ताव पारित किया था। सात सितंबर 2023 को विधानसभा ने प्रवर समिति को विधेयक सौंपा था ।

11 नवंबर को प्रवर समिति ने विधानसभा अध्यक्ष को रिपोर्ट सौंपी थी। फरवरी 2024 में सदन ने सर्वसम्मति से विधेयक पारित कर राजभवन भेजा था। जिसके बाद राजभवन की मुहर लगने पर 18 अगस्त को अधिनियम बनने का रास्ता साफ हो गया था। 

यह सब होने के बाद अभ्यर्थियों ने गंभीर स्थिति को देखते हुए पीआईएल (Regis. No. 152/2024) 19 सितम्बर 2024 को दायर कर दी थी। जिसपर अभी आखिरी फैसला आना बाकी है।

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इस आरक्षण से क्या दिक्क्त हो रही है?

अभ्यर्थियों को इस आरक्षण की वजह से काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। अभ्यर्थियों का कहना है कि यदि ऐसे ही चलता रहा तो सामान्य युवाओं के नौकरी नहीं बचेंगी। अभ्यर्थियों का कहना है कि  राज्य आंदोलनकारी राज्य की वर्तमान जनसंख्या का 1% मात्र भी नहीं हैं। यह आरक्षण प्रदेश को उन छात्रों के साथ अन्याय है जो प्रदेश सेवा में आने के लिए अथक परिश्रम करते हैं। साथ ही 1% से भी कम जनसंख्या को 10% आरक्षण दिया जाना कहीं से भी न्यायसंगत नहीं लगता। सरकारी नौकरी में स्पोर्ट्स में 4% आरक्षण मिलता है। उसमें कई लोगों ने फर्जी सर्टिफिकेट बनाए थे। ऐसे मामले पहले आ चुके हैं। हालांकि, सरकार द्वारा इन पर करवाई भी की गई थी। 

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