Pushkar Kumbh: माणा गांव में 12 सालों बाद 12 दिनों का पुष्कर कुंभ आयोजित
Pushkar Kumbh: उत्तराखंड के बद्रीनाथ धाम में इस साल पुष्कर कुंभ लगा है। जिसमें दक्षिण भारत के सैकड़ो आचार्य शामिल हुए हैं। दक्षिण भारतीय आचार्य की परंपरा में हर 12 वर्ष में पुष्कर कुंभ मनाया जाता है। इसी परंपरा के अंतर्गत दक्षिण भारत के सभी आचार्य पंडित यहां हर 12 वर्ष में पुष्कर कुंभ में पहुंचते हैं और सरस्वती नदी के उद्गम में पुष्कर कुंभ मनाते हैं। माणा गांव के पास अलकनंदा व सरस्वती के संगम पर 12 साल में दक्षिण भारत के श्रद्धालु पुष्कर कुंभ का आयोजन करते हैं।
कुंभ का आयोजन कब किया जाता है?
भारत की परंपरा के तहत बृहस्पति जब भी राशि परिवर्तित करता है तब कुंभ (Pushkar Kumbh Uttarakhand History) का आयोजन होता है। प्रतिवर्ष अलग-अलग नदियों में कुंभ का आयोजन किया जाता है। प्रत्येक 12 वर्षों में बृहस्पति मिथुन राशि में प्रवेश करता है जिसके बाद माणा गांव में स्थित सरस्वती नदी के संगम पर पुष्कर कुंभ का आयोजन होता है। दक्षिण भारत में अधिकतर वैष्णव समुदाय के लोग रहते हैं। वह विष्णु भगवान को मानते हैं। इसी वजह से पुष्कर कुंभ का आयोजन बद्रीकाश्रम क्षेत्र में होता है।

सरस्वती नदी का इतिहास (Pushkar Kumbh)
स्कंद पुराण के अनुसार सरस्वती नदी माणा में आधा किलोमीटर के दायरे में साक्षात दिखाई देती हैं। इसका जल भी पूरी तरह से हरे रंग का दिखाई देता है। इसी जगह पर सरस्वती नदी विलुप्त हो जाती हैं। इसी मान्यता को मानते हुए दक्षिण भारत के लोग यहां पर पुष्कर कुंभ मनाने वर्षों से आ रहे हैं।
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क्या है सरस्वती स्नान की परंपरा?
आचार्यों का कहना है कि 12 राशियों में बृहस्पति होता है। प्रत्येक वर्ष यह राशि, जब मेष में होती है तो गंगा स्नान होता है। जब यह वृष में होती है तो यमुना स्नान होता है। इसके अलावा जब मिथुन में होती है तब सरस्वती (saraswati river uttarakhand) स्नान की परंपरा है।
माणा गांव का महत्व (India First Village)
सरस्वती माणा गांव में है जो बद्रीनाथ से 3 किलोमीटर दूर है। यह भारत का पहला गांव है। इस गांव ने पूरे देश को समृद्धता दी है। इसी गांव से वेद निकले हैं, 18 पुराण, 18 उपपुराण और व्यास जी भी यहां मौजूद है। गीता भी इसी गांव में लिखी गई हैं। पुष्कर कुंभ में डेढ़ लाख से अधिक दक्षिण भारत के श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है। श्रद्धालुओं को लेकर सभी तरह की तैयारी की गई है।
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2013 से भव्यता से बन रहा कुंभ
गांव के लोगों (uttarakhand tourism) का कहना है कि पहले हमें इस कुंभ के बारे में नहीं पता था। दक्षिण भारत के लोग यहां आते थे और स्नान करने के बाद लौट जाते थे। लेकिन साल 2013 में हम लोगों को इसके बारे में पता चला तो हम इसे भव्य रूप से मनाने लगे। मेले को लेकर सभी तरह की छोटी से लेकर बड़ी तैयारी की जाती है। सड़कों को ठीक किया गया है, उसके अलावा लॉज और ऑनलाइन बुकिंग भी इस साल मई के महीने के लिए लगभग फुल हो गई है।