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Harela Tyohar: आज राज्य में लगेंगे 5 लाख पौधे! जानिए क्यों मनाते है हरेला?

Harela Tyohar: प्रकृति पर्व हरेला आज प्रदेश भर में उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। आज गांव से लेकर शहर तक हरियाली के लिए पौधारोपण की मुहिम चल रही है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर हरेला पर्व पर राज्य में 5 लाख पौधे रोकने का लक्ष्य रखा गया है। गढ़वाल मंडल में 3 लाख और कुमाऊं मंडल में 2 लाख पौधे रोपे जाएंगे। साथ ही एक ही दिन में पौधारोपण का यह एक बड़ा रिकॉर्ड भी होगा।

हरेला का त्योहार मनाओ थीम (harela tyohar)

‘हरेला का त्योहार मनाओ- धरती मां का ऋण चूकाओ’ और ‘एक पेड़ मां के नाम’ थी। इसके अंतर्गत आज पौधारोपण किया जा रहा है। राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेवानिवृत) और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्यवासियों को हरेला पर्व की शुभकामनाएं दी है। इसके अलावा ज्यादा से ज्यादा संख्या में पौधारोपण करने की अपील भी की है। राज्यपाल ने अपने संदेश में कहा है कि हरेला उत्तराखंड की परंपरा, संस्कृति और प्रकृति प्रेम का पर्व है।

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क्या है हरेला पर्व का महत्व?

हरेला पर्व हमें हरियाली से जुड़ने और पर्यावरण की रक्षा करने की प्रेरणा देता है। यह पर्व (harela festival importance) हमारे जीवन में हरियाली, समृद्धि और शांति लाने वाला पर्व है। यह हमें पेड़-पौधे, जल, जमीन और पर्यावरण से जुड़ने का अवसर देता है। सभी को एक साथ मिलकर इस परंपरा को आगे बढ़ाना चाहिए। वर्तमान समय में ग्लोबल वार्मिंग, प्रदूषण जैसे गंभीर समस्याओं का विश्व सामना कर रहा है। ऐसे में हरेला हमें एकजुट होकर प्रकृति की रक्षा का संदेश देता है।

मुख्यमंत्री धामी ने दिया संदेश (harela 2025 wishes)

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपने संदेश में कहा है कि हरेला पर्व प्रकृति के प्रति कृतज्ञता प्रदर्शित करने के साथ ही लोगों को संस्कृति और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है। यह पर्व हमें धरती व पर्यावरण (harela and its importance) की देखभाल के प्रति भी प्रेरित करता है। आने वाली पीढ़ियों को शुद्ध और स्वस्थ वातावरण देने के लिए पौधारोपण करना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने यह भी कहा कि देव भूमि उत्तराखंड अपने धर्म, अध्यात्म और संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। इसलिए पर्यावरण संरक्षण के प्रति हमारी जिम्मेदारी और ज्यादा बढ़ जाती है।

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कैसे मनाते हैं हरेला?

कैसे मनाते हैं हरेला?

हरेला मनाने के लिए 9 दिन पहले एक टोकरी या थाली (harela kese mnate hai) में जौ, गेहूं मक्का आदि के बीच बाय जाते हैं। दसवें दिन यानी हरेला के दिन इन बीजों को काटा जाता है और देवी पार्वती और भगवान शिव को अर्पित किया जाता है। इसके बाद हरेला घर के सभी सदस्यों के सिर पर रखा जाता है। इसके अलावा आज के दिन पारंपरिक पकवान भी बनाए जाते हैं जैसे खीर, पुआ और भट्ट की चुरकानी।

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